मालवा का लोक साहित्य | Malwa Ka lok Sahitya मालवी लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा और लोकनाट्य | प्राचीनकाल से ही मालवा में मालवी लोक साहित्य की वाचिक परम्परा विद्यमान थी। मालवी बोली के प्राचीन साहित्यकारों में रोड, रूपमती, चन्द्रसखी, सुन्दरकली आदि नाम प्रमुख हैं। आधुनिक काल में मालवी लोक साहित्य की परम्परा को विकसित करने वाले साहित्यकारों में पन्नालाल नायाब, श्रीनिवास जोशी, नरेन्द्रसिंह तोमर, आनन्द राव दुबे, गिरवरसिंह भँवर, हरीश निगम, बालकवि बैरागी, सुल्तान मामा, जुगलकिशोर द्विवेदी, भावसार बा, मोहन सोनी तथा डॉ. शिव चौरसिया प्रमुख हैं। मालवी लोक साहित्य को चार भागों में विभक्त किया गया है –
मालवा का लोक साहित्य
मालवा के लोक साहित्य को विस्तार से समझाइए।
“अथवा”
मालवी लोकगीत को स्पष्ट कीजिए।
मालवी लोकगाथा तथा मालवीय लोक कथा पर प्रकाश डालिए।
मालवी लोकनाट्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :-
मालवी लोक-साहित्य
प्राचीनकाल से ही मालवा में मालवी लोक साहित्य की वाचिक परम्परा विद्यमान थी। मालवी बोली के प्राचीन साहित्यकारों में रोड, रूपमती, चन्द्रसखी, सुन्दरकली आदि नाम प्रमुख हैं। आधुनिक काल में मालवी लोक साहित्य की परम्परा को विकसित करने वाले साहित्यकारों में पन्नालाल नायाब, श्रीनिवास जोशी, नरेन्द्रसिंह तोमर, आनन्द राव दुबे, गिरवरसिंह भँवर, हरीश निगम, बालकवि बैरागी, सुल्तान मामा, जुगलकिशोर द्विवेदी, भावसार बा, मोहन सोनी तथा डॉ. शिव चौरसिया प्रमुख हैं। मालवी लोक साहित्य को चार भागों में विभक्त किया गया है –
मालवी लोकगीत –
लोकभाषा मालवी के लोकगीत अपनी विशद् भावभूमि और भाषा-माधुर्य के कारण लोकप्रसिद्ध हैं। लोकगीत को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है –
- विविध संस्कार गीत – मालवी संस्कार गीत मुख्यत: नामकरण, अन्नप्रासन, मुण्डन, बाधवा, जच्चा, पगल्या, सूरज पूजा, लोरियाँ, लगन झेलना, माण्डवा गाड़ना, कुम्हार के यहाँ से खानागार लाना, दूल्हे को नहलाना, हल्दी लगाना, तेल चढ़ाना, फेरे करवाना, तोरण मारना, दहेज देना, कांकड़-डोरा छोड़ना आदि है।
- देवी-देवताओं एवं पूर्वजों के गीत – लोक देवी-देवताओं एवं पूर्वजों के प्रति मालवा में अपार श्रद्धा पायी जाती है, क्योंकि देवी-देवता भक्त को मनोवांछित फल देते हैं। जिनमें भेरू महाराज, तेजाजी, देवनारायण आदि के गीत प्रमुख हैं।
- व्रत – त्योहार सम्बन्धी गीत – मालवा में वर्षभर व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। सावन सोमवार, संजा, नवरात्रि, गणेश चतुर्थी, अनन्त चतुदर्शी, ग्यारस, चौदस, पूर्णिमा, अमावस्या आदि प्रमख हैं। त्योहार पर गाये जाने वाले गीतों में-होली पर फाग गीत, दीवाली एवं गोवर्धन पूजा पर गाय-बैल के गीत, राखी पर भाई-बहन के गीत इत्यादि हैं।
- मौसम सम्बन्धी गीत – इसमें विविध ऋतुओं जैसे-सावन-भादौ, फाल्गुन आदि पर लोकगीत गाये जाते हैं।
- रिश्ते – नाते सम्बन्धी गीत – इसके अंतर्गत पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पत्रु, पिता-बहू, सास-बहू, देवर-भाभी, देवरानी-जिठानी, प्रेमी-प्रेमिका आदि के गीत गाये जाते हैं।
मालवा में बहुत से लोकगीत ऐसे हैं, जिन्हें विविध अवसर पर सिर्फ पुरुष ही गाते हैं। जिनमें कीर्तन, निर्गुणी भजन, होली गीत, हीड़ (दीपावली पर), लावणी तथा माच प्रमुख रूप से आते हैं।
मालवी लोकगाथा :-
मालवा में लोकगाथाओं का अक्षय भण्डार है। यहाँ की प्रसिद्ध लोकगाथाओं में हीड़, राजानल, तेजा धोल्या, ढोला मारवण, बालाबाउ, नागजी-दूलजी, ग्यारस माता, चन्दणा कुँवर, सोरठा कुंवरी, राजा विक्रमादित्य, राजा भोज, रानी रूपमती, रूपादे, गोपीचंद एवं भरथरी की गाथाएँ आज भी बुजुर्गों के मुँह से सुनी जाती हैं।
मालवी लोककथा :-
लोककथाएँ भी लोकमन के मनोरंजन का सरल साधन हैं जो रंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी होती हैं। मालवी लोक कथाएँ- प्रेम, शिक्षा, चतुराई, ठग एवं चोर, पशु-पक्षी, व्रत-त्योहार, कृषि आदि के अतिरिक्त राजा विक्रमादित्य, राजा भर्तृहरि एवं रानी पिंगला की अनेक लोककथाएँ लोक में व्याप्त हैं।
मालवी लोकनाट्य :-
मालवा में लोकनाट्य के अंतर्गत माच, गरबा, भोई, ढूंट्या, स्वांग आदि प्रचलित हैं। माच मालवा का प्रसिद्ध लोकनाट्य है। माच गद्य व पद्य मिश्रित चम्पू होता है, जिसमें पद्य संवाद बोलने के बाद उसका गद्य भी बोला जाता है जबकि ‘गरबा’ नवरात्रि के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है। ‘टूंट्या’ मुख्यत: विवाह के अवसर पर महिलाओं द्वारा किया जाने वाली लोकनाट्य है, जबकि ‘भोई’ लोकनाट्य लुप्त होने की स्थिति में है।
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