बुन्देलखण्ड की लोककलाऐ, लोकचित्र और लोकनृत्यों के बारे में पूरा विवरण बताया गया। और बघेलखण्ड की लोककलाओ के बारे बताया। इस पोस्ट को अच्छे ध्यान से पढ़ते हो, तो आपको एक ही बार में याद हो जायेगा। B.A., B.com, B.Sc. 3rd year के हिंदी के सब्जेक्ट में पूछा गया। we were told full details about the folk art, folk paintings and folk dances of Bundelkhand. And told about the folk arts of Baghelkhand. बुन्देलखण्ड की लोककला पर निबन्ध | बुन्देली लोकचित्र पर लेख | बुन्देली लोक नृत्यों के बारे में विस्तार से समझाइए | बघेलखण्ड की लोककला पर प्रकाश डालिए। इन प्रश्नो के उत्तर आपको इसके थोड़ी नीचे मिलेंगे।
प्रश्न 1. बुन्देलखण्ड की लोककला पर निबन्ध लिखिए।
“अथवा”
(1) बुन्देली लोकचित्र पर लेख लिखिए।
(2) बुन्देली लोक नृत्यों के बारे में विस्तार से समझाइए।
उत्तर:–
बुंदेलखण्ड की लोककलाएँ –
बुंदेलखण्ड की धरती पर प्राय: हर युग में युद्ध लड़े गये हैं, इसलिये बुंदेली लोकजनों में स्वाभाविक रूप से शौर्य और साहस विद्यमान हैं, बुंदेली लोककला में भी वीर रस का समावेश देखा जा सकता है। बुंदेलखण्ड में बुंदेली लोकचित्र, लोकशिल्प एवं लोकृनत्य आदि लोक विधाओं का संरक्षण एवं विस्तार परिलक्षित हैं।
(1) लोकचित्र- बुंदेली लोकचित्र परम्परा में पर्व-त्यौहार और व्रत से सम्बन्धित भित्ति चित्रों एवं भूमि अलंकरणों की बहुलता सर्वाधिक है, भूमि अलंकरण में चौक पूजने का रिवाज प्रत्येक अवसर पर दिखाई देता है। बुंदेलखण्ड में प्रचलित लोकचित्रों में नौरता (सुअटा) प्रमुख है, जो प्राय: खुशी एवं त्योहारों के अवसर पर बनाए जाते हैं। बुंदेली लोकचित्र के जातिगत प्रतीक, बिम्ब और अर्थ की गहराई के कारण लोकचित्र परंपरा के अर्थ रहस्यपूर्ण हैं।
बुंदेलखण्ड के प्रमुख लोकचित्र इस प्रकार हैं –
- सुरैती- दीपावली में लक्ष्मी पूजा के समय भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
- नौरता/नवरत- नवरात्रि में मिट्टी, गेरू, हल्दी से कुँवारी कन्याओं के द्वारा भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
- सामुलिया- नवरात्रि में गोबर से कुँआरी कन्याओं द्वारा भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
- मोरइला- दीवारों पर विभिन्न रंगों से मोर के भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
- बरायन/अगरोहन- वधू मण्डप में विवाह के अवसर पर बनाए जाते हैं।
- मोरते- विवाह के समय मुख्य दरवाजे पर पुतरी का भित्ति चित्र बनाया जाता है।
- साँझाफुली- कँवार मास में कुँआरी लड़कियों द्वारा भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त संपूर्ण मध्यप्रदेश में हाथ, पैर एवं शरीर के विभिन्न हिस्सों को मेहंदी या रंग से गुदवाए जाने की परम्परा है।
(2) लोकनृत्य- बुंदेलखण्ड में प्राचीन एवं पारंपरिक नृत्यों का प्रचलन है। नृत्या का लोकजीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इस अंचल में कई आकर्षक नृत्य विद्यमान हैं, धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक कथानकों पर आधारित नृत्य अत्यंत लोकप्रिय हैं। बुंदेलखण्ड में सर्वाधिक प्रचलित राई नृत्य जनप्रिय है, जो प्रायः खुशी के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है। यह अत्यंत प्राचीन नृत्य विद्या है। लोकजीवन को सरस एवं मनोरंजन के उद्देश्य से इन नृत्यों का आयोजन किया जाता है। बंदेलखण्ड में विभिन्न प्रकार के नृत्य प्रचलित हैं, जैसे –
- कानड़ा नृत्य- बुंदेलखण्ड में मुख्य रूप से धोबी समाज द्वारा यह नृत्य किया जाता है। विवाह, जन्मोत्सव आदि शभ अवसरों पर गुरुवंदना के बाद गजानंद भगवान की कथा के साथ सारंगी और ढोलक वाद्यों पर मंद से तीव्र गति में नृत्य किया जाता है।
- सैरा नृत्य- बुंदेलखण्ड में श्रवण-भादों के महीने में विशेषकर तीज के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। सैरा नृत्य पुरुष प्रधान समूह नृत्य है।
- ठिमरयाई नृत्य- शादी-ब्याह एवं नवदुर्गा के अवसर पर ग्रामीण अंचल में ठीमर जाति के लोगों द्वारा प्रमुख रूप से किया जाता है। दौड़ना, पंजों के बल चलना, मृदंग की थाप पर कलात्मक ढंग से ठुमकना, पदाघात करना, इस नृत्य की विशेषता है। समय पर द्रुतगति से घूमते हुए सात-आठ चक्कर लगाना, इसके प्रमुख भाव है।
- अखाड़ा नृत्य- दशहरे के अवसर पर शस्त्र पूजा के साथ यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में युद्ध कौशल, शस्त्र संचालन, शरीर सौष्ठव, व्यायाम आदि दैहिक क्रियाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
- जवारा नृत्य- चैत्र एवं क्वॉर में नवदुर्गा के अवसर पर महिलाओं द्वारा धार्मिक गीतों पर किया जाने वाला एकल शैली का नृत्य बुंदेलखण्ड की सभी जातियों द्वारा किया जाता है।
- बधाई नृत्य– बंदेलखण्ड में हर्ष के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।
- राई (बेड़नी)-नृत्य- राई अथवा बेड़नी नृत्य बुंदेलखण्ड का लोक प्रसिद्ध है। नृत्य करते हुए बेड़नी और मृदंगवाटक के बीच रोचक संवाद होते हैं, इसमें मर्यादाओं को तोड़ता हुआ लोक-काव्य प्रवाहित होता है। वस्तुत: यह नृत्य बेड़नी के द्वारा किया जाता है इसीलिए इसे बेड़नी नृत्य भी कहते हैं।
प्रश्न 2. बघेलखण्ड की लोककला पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:– बघेलखण्ड की लोककलाएँ बघेलखण्ड की पारम्परिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अपनी एक अलग पहचान है, यह एक संस्कृति सम्पन्न अंचल कहलाता है। यहाँ प्रकृति का अपूर्व सौंदर्य देखने को मिलता हैं। पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत के कारण यहाँ की कला एवं रूपंकर कलाओं में विविधता मिलती है। बघेलखण्ड की लोककलाएँ इस प्रकार हैं –
- खरादकला – यह कला अत्यंत प्राचीन है, खराद के कलाकार परंपरागत हैं। श्योपुरकला, बुदनीघाट, रीवा, मुरैना की खराद कला ने प्रदेश ही नहीं, बल्कि प्रदेश के बाहर भी प्रसिद्धि पायी है। खराद कला सागवान, दूधी, कदम्ब, सलई, गुरजैल, मेडला, खैर आदि की लकड़ी पर रंगों के द्वारा की जाती है। कैवड़े के पत्ते से रंगों में चमक पैदा की जाती है।
- धातु शिल्प- सतना के उचेहरा कस्बे में काँसे के प्रसिद्ध बटलोई नामक पात्र बनाए जाते हैं।
- सुपारी शिल्प- रीवा में सुपारी पर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जो भारत में प्रसिद्ध है।
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